एक पिता का डर
मेरी प्यारी लाडली छोटी सी बच्ची,
बाहर खेलने जाने की जिद करती है.
बड़ों की दुनिया से अनजान वो,
नहीं जानती कि कितनी खतरनाक जिद करती हैं
मैं समझाता हूँ कि बेटी बाहर न जा,
जंगली जानवर हैं वहाँ बेटी, बाहर न जा.
मेरी बातों पर वो खिलखिलाकर हँसती है,
बोली छोटी मैं हूँ और डरते तुम हो?
पापा बाहर शेर या भालू है कोई?
किस बात से मेरे पापा इतना डरते हो?
सच है कि वो नहीं मैं डरता हूँ,
पर उस मासूम को दूँ तो क्या जवाब दूँ?
शेर, चीते, भालू का डर नहीं है मुझे,
भूखे न हों तो वो नुकसान नहीं करते.
डर तो उन नरपिशाचों से लगता है,
जो दरिंदे समाज में हर तरफ फैले हैं.
नियम, कानून, सजा का जिन्हें कोई खौफ नहीं,
इन पिशाचों का कोई धर्म कोई ईमान नहीं.
हर वक्त भूखे भेडिये ये इंसानी खालों में,
मासूम भोली बच्चियों की ताक में रहते हैं.
मेरी लाडली बच्ची बाहर न जा,
जंगली जानवर हैं वहाँ बेटी बाहर न जा.
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अतुल बैस