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Saturday, December 18, 2010

शिष्य-गुरु संवाद

शिष्य:   हे गुरु ज्ञानदाता
विनती सुन लीजिए.
सेमेस्टर खत्म होने को है,
परीक्षा ले लीजिए.
बहुत कष्ट उठा कर पढ़ा है,
मना मत कीजिए.
हठ छोड़ हे ज्ञानमूर्ति,
परीक्षा ले लीजिए.
गुरु:     प्रिय शिष्यों थोडा धीरज धारिये.
तुम भी यहीं हो और मैं भी यहीं,
फिर काहे किच किच कीजिए?
पढाई का क्या है होती रहेगी,
थोड़ी माया आने दीजिए.
परीक्षा भी ले लेंगे भाई,
ज़रा पे कमीशन तो लागू होने दीजिए.
शिष्य:   आप शारदापुत्र प्रभु
लक्ष्मी वाहन बनने की जिद ना कीजिए
माया छोड़ हे भाग्यविधाता राह हमको दीजिए.
गुरु:     राह का क्या है मिल ही जाएगी,
इतना टेंशन न लीजिए.
भाग्य हम अपना तो बनालें,
फिर आप अपनी बात कीजिए.
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                     अतुल बैस

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